Sunday 7 September 2014

दहेज कानून का दुरुपयोग




कानून का कबाड़ा

नवभारत टाइम्स | Jul 4, 2014, 

दहेज कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जो व्यवस्था दी है, वह बेहद महत्वपूर्ण है। इसके जरिए अदालत ने कार्यपालिका को भी एक संदेश देने की कोशिश की है, जिसे उसको अच्छी तरह समझ लेना चाहिए। कानून के मिसयूज पर चिंता जताते हुए कोर्ट ने कहा कि इसको बनाया इसलिए गया था कि महिलाओं को प्रताड़ना से बचाया जा सके। लेकिन कुछ औरतों ने इसका नाजायज इस्तेमाल किया और दहेज उत्पीड़न की झूठी शिकायतें दर्ज कराईं। ऐसे कई मामलों में पति के मरणासन्न दादा-दादी और विदेश में रह रही बहन तक को निशाना बनाया जा चुका है। इसलिए कोर्ट ने सख्त हिदायत दी है कि दहेज उत्पीड़न के केस में आरोपी को जरूरी होने पर ही अरेस्ट किया जाए। अदालत ने साफ कहा कि जिन मामलों में 7 साल तक की सजा हो सकती है, उनमें गिरफ्तारी सिर्फ इस कयास के आधार पर नहीं की जा सकती कि आरोपी ने वह अपराध किया होगा। गिरफ्तारी तभी की जाए, जब इस बात के पर्याप्त सबूत हों कि आरोपी के आजाद रहने से मामले की जांच प्रभावित हो सकती है, वह कोई और अपराध कर सकता है, या फरार हो सकता है। कोर्ट का आदेश है कि दहेज केस में किसी को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस को पहले केस डायरी में वजह दर्ज करनी होगी, जिस पर मजिस्ट्रेट द्वारा विचार किया जाएगा। अगर मजिस्ट्रेट ने जरूरी समझा तो वह गिरफ्तारी का आदेश दे सकता है। अगर किसी पुलिस अधिकारी ने कोर्ट के इस आदेश की अनदेखी की तो उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जानी चाहिए। दहेज उत्पीड़न विरोधी कानून के साथ विडंबना यह है कि आज तक इसका लाभ वास्तविक पीड़िताओं को कम ही मिल पाया है। नैशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की वर्ष 2013 की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में हर घंटे एक महिला दहेज हत्या का शिकार हो रही है। लेकिन दहेज प्रताड़ना के न जाने कितने मामले दर्ज ही नहीं होते। कानूनी पचड़ों या समाज में बदनामी के भय से प्रताड़ित महिलाएं सामने नहीं आतीं और घुट-घुटकर जीती हैं। दहेज लोभियों को सजा दिए जाने की दर भी बेहद कम है। जाहिर है, यह कानून अपने मकसद से भटक चुका है। शादी-ब्याह में दहेज के चलन का बना रहना ही इसका एक सबूत है। देश में कई और भी कानून ऐसे हैं जो ऊपरी तौर पर बेहद प्रगतिशील दिखते हैं पर या तो वे बेजान हो चुके हैं या उनका नाजायज इस्तेमाल हो रहा है। सरकार और विधायिका का जोर कानून बनाकर जनता की वाहवाही लूटने पर होता है। उसकी मॉनिटरिंग और समीक्षा की चिंता कोई नहीं करता। किसी को फिक्र नहीं कि कानून जिनके लिए बनाया गया है उन लोगों से उसका कोई रिश्ता बन पा रहा है या नहीं। वक्त आ गया है कि दहेज कानून के स्वरूप पर पुनर्विचार किया जाए और या तो उसमें संशोधन किया जाए, या उसकी जगह कोई नया कानून लाया जाए ताकि लाखों पीड़ित स्त्रियों की जीवन रक्षा हो सके और उन्हें इज्जत से जीने का अधिकार मिल सके।

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