Sunday 7 September 2014

धारावाहिकों में औरत




महिलाओं की गलत तस्वीर

 पेश कर रहे हैं टीवी सीरियल्स

   Nov 8, 2013

भारत में सैटेलाइट टीवी के विस्तार ने टेलिविजन प्रसारण का चरित्र पूरी तरह बदल दिया है। आज विभिन्न निजी चैनल अपने मुनाफे के हिसाब से कार्यक्रम तैयार कर रहे हैं। इसलिए सोप ऑपेरा पूरी तरह बदल गया है। इसमें समाज की एक असंतुलित तस्वीर दिखाई दे रही है। खासकर महिलाओं की छवि को मनमाने तरीके से तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है। इनमें समाज को आगे ले जाने के बजाय पीछे ले जाने की कोशिश नजर आती है। अनेक धारावाहिकों में आजकल औरत के लिए एक अजीब सी परीक्षा चलाई जा रही है। लड़की को घर की बहू बनाने के लिए उसकी परीक्षा ली जाती है, जिसमें उससे नौकरों की तरह काम करवाना, जुल्म सहकर भी चुप रहना, पति की हर तरह से सेवा करना शामिल है। लेकिन उन्हीं धारावाहिकों में जब बेटा शराब पीकर, गाली-गलौज कर पत्नी को चोट पहुंचाए तो उसे माता-पिता दुत्कारते नजर नहीं आते, न किसी दृश्य में वे उसे ऐसी गलतियों के लिए उतना डांटते नजर आते हैं जितना कि एक औरत को खाने में नमक कम पड़ जाने पर कोसते नजर आते हैं। और तो और ससुराल वालों की तरफ से बेटे की तकलीफ के लिए उसकी पत्नी के नक्षत्रों को दोष देना, पति की गलतियों के लिए पत्नी को ही जिम्मेदार ठहराना, उसे सजा देना- ऐसे दृश्य तो इन धारावाहिकों में अब आम हो गए हैं। यह स्त्री को लेकर चली आ रही सामंती सोच का महिमामंडन नहीं तो और क्या है? घर की औरत को उसकी सास, पति या कोई भी बड़ी आसानी से तमाचा जड़ देता है। छोटी से छोटी गलती के लिए उसे घर से निकाल देने की धमकी दी जाती है। और बदले में सब-कुछ सह जाने पर उस औरत को महान बताया जाता है। अभी चल रहे एक धारावाहिक में तो नायिका की सास ने उसे अच्छी बहू साबित करने के लिए कुछ दिनों की मोहलत दी है, यदि वह सबकी सेवा कर और बेवजह की झिड़कियां खाकर, ताने सुनकर, जुल्म सहकर खुद को 'अच्छी बहू' साबित नहीं कर पाई तो वह उसे मायके में छोड़ आएगी। बदले में यह कतई नहीं दिखाया जाएगा कि उसने बगावत की बल्कि यह दिखाया जाएगा उसने सब कुछ सहा और अच्छी बहू बन गई। उसे उसके ससुराल वालों ने घर से न निकाल कर उस पर उपकार किया। इसरो भले ही मंगल ग्रह की कक्षा में जाने के लिए यान छोड़ चुका है, लेकिन टीवी सीरियलों में पत्नी के ग्रहों की वजह से पति का जीवन खतरे में पड़ जाता है। समझ में नहीं आता कि ऐसी महिलाएं आज कहां हैं? और अगर हैं भी तो क्या ये चैनल उन्हें दूसरी औरतों के लिए रोल मॉडल की तरह पेश करना चाहते हैं? सीरियलों में 'सहनशील' औरतों की कहानी बार- बार दोहराई जा रही है। और आश्चर्य तो यह है कि ऐसे टीवी सीरियलों की टीआरपी भी बहुत है। तो क्या यह मान लिया जाए कि दर्शक औरत का यही रूप पसंद कर रहे हैं? गौर करने की बात है कि इन सीरियलों के दर्शकों में ज्यादातर घरेलू महिलाएं ही होती हैं। दरअसल इन महिलाओं के भीतर सास-बहू के परंपरागत रिश्तों को लेकर एक नॉस्टेल्जिया रहता है जिससे उन्हें निकालने की जरूरत है। बेहतर होता कि यह काम ये सीरियल ही करते। पर उन्हें तो बस अपने फायदे से मतलब है। अगर अश्लील कार्यक्रमों को रोकने को लेकर उपाय किए जा सकते हैं तो ऐसे सामंती सोच वाले सीरियलों को रोकने पर भी विचार किया जाना चाहिए, जो स्त्री की गलत छवि पेश करते हैं। इसके लिए सामाजिक संगठनों को आगे आना चाहिए। आज के टीवी धारावाहिक स्त्री को लेकर वर्षों से चली आ रही सामंती सोच को ही बढ़ावा दे रहे हैं। पर खुद महिलाएं इसे चाव से देख रही हैं।

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