Monday 27 October 2014

बुढ़ापा




उपेक्षा और असुरक्षा झेलता बुढ़ापा

मुद्दा डॉ. मोनिका शर्मा

बुजुर्गों के प्रति बढ़ती असंवेदनशीलता आज के दौर का कड़वा सच है। महानगरों से लेकर छोटे शहरों तक जीवन की ढलती सांझ में अपनों का साथ और सहयोग चाहने वाले वरिष्ठ नागरिकों को अकेलेपन और अपमान का दंश मिल रहा है। हाल ही में गैर सरकारी संगठन हैल्प एज इंडिया द्वारा 8 राज्यों के 12 शहरों में करवाए गये सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि बीते साल के मुकाबले भारत में इस साल 50 फीसद बुजुर्ग अत्याचार का शिकार हुए। पिछले साल यह संख्या 23 प्रतिशत थी। भारत की पारिवारिक और सामाजिक व्यवस्था की सुदृढ़ता का मान पूरी दुनिया में किया जाता है। सहअस्तित्व और आपसी सम्मान की सोच के साथ पीढ़ियों का साथ रहना हमारे यहां आम बात रही है। सर्वे के परिणामों में जो कटु सत्य सामने आया है, वह यह कि घर के बड़ों के साथ अत्याचार करने और उन्हें उपेक्षित महसूस करवाने वाले उनके अपने ही है। जिनमें परिवार के लोग और सगे नातेिरश्तेदार शामिल हैं । यह दुखद ही है कि बेटे और दामाद इस कटु व्यवहार के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। इतना ही नहीं सर्वे के मुताबिक माता-पिता के लिए संवेदनशील कही जाने वाली बेटियां भी घर के बुजुर्गों के साथ बुरा बर्ताव करने में पीछे नहीं हैं। आंकड़ों की मानें तो 61 प्रतिशत दामाद और 59 प्रतिशत बेटे बुजुर्गों पर जुल्म ढाते हैं। सर्वे में यह भी सामने आया है कि उम्रदराज लागों के साथ होने वाले इस र्दुव्‍यवहार में भी महिला और पुरु षों के आंकड़े अलग- अलग हैं। जहां 48 प्रतिशत बुजुर्ग पुरु ष अपनों के अत्याचार का शिकार होते हैं, वहीं बुगुर्ग महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा 52 फीसदी है। देश और समाज को गढ़ने में अपना पूरा जीवन लगा देने वाले बुजुर्गों की समस्याओं के प्रति परिवार, समाज और सरकार की उदासीनता आज के दौर का कड़वा सच है। उम्रदराज लोगों का एक बड़ा प्रतिशत ऐसा है जो स्वयं को समाज से कटा हुआ और मानिसक रूप से दमित महसूस करता है। इस सर्वे में यह भी सामने आया है कि बुजुर्गों पर अत्याचार के मामले में 41 फीसद गाली गलौच और 33 फीसद अपमानित करने की घटनाएं शामिल हैं। अपनों से मिलने वाला ऐसा रूखा और असंवेदनशील व्यवहार वृद्धजनों को कई मानसिक बीमारियों का भी शिकार बना रहा है जिसके चलते उनका शारीरिक ही नहीं मानसिक स्वास्थ्य भी कमजोर होता जा रहा है। जिस देश में बुजुगरे का आश्रय पाकर परिवार का हर सदस्य सुरक्षित महसूस किया करता था, उसी समाज में वरिष्ठ नागरिक आज हर तरह से स्वयं को असुरक्षित पाते हैं, अपमान झेलते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। बीते कुछ बरसों में बुजुर्गों का अपनों की उपेक्षा का शिकार बनना हमारी बदलती सामाजिक और पारिवारिक परिस्थितियों को रेखांकित करता है। वृद्धजनों के प्रति उनके अपने ही परिवारों में उपेक्षा का भाव तेजी से पनपा है जो दुखद और चिंतनीय है क्योंकि बड़ों से परिवार की युवा पीढ़ी का जुड़ाव और उनके प्रति जिम्मेदारी का भाव ही हमारे यहां वरिष्ठोंजनों की सुरक्षा और संबल हुआ करते थे। यही वजह है कि विकसित देशों के समान भारत में बुजुर्गों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए सरकार की योजनाएं न के बराबर हैं। लेकिन वृद्धजनों के सामाजिक-आर्थिक और स्वास्थ्य से जुड़े हालात अब और चिंतनीय होते जा रहे हैं। कभी परिवार के लिए अनुभव की खान और स्नेह का साया बनने वाले बुजुर्ग अब हर तरह से उपेक्षित तो हैं ही, वे अपने बच्चों का अमर्यादित व्यवहार झेलने को भी मजबूर हैं। एक समय था जब सामाजिक दबाव के चलते ही सही, बच्चे बुजुगरे की देखभाल किया करते थे। उनकी जिम्मेदारी पूरे मान-सम्मान के साथ उठाया करते थे। ऐसे में आज के आपाधापी भरे दौर में जब समाज और सामाजिक परिवेश का तानाबाना ही बदल गया है, बुज़ुर्गों के साथ होने वाला र्दुव्‍यवहार हम सबके सामने है। इस सर्वे में यह भी सामने आया है कि बुजुर्गों पर अत्याचार के मामले में 41 फीसद गाली गलौच और 33 फीसद अपमानित करने की घटनाएं शामिल हैं। अपनों से मिलने वाला ऐसा रूखा और असंवेदनशील व्यवहार वृद्धजनों को कई मानसिक बीमारियों का भी शिकार बना रहा है । जिसके चलते उनका शारीरिक ही नहीं मानिसक स्वास्थ्य भी कमजोर होता जा रहा है। यही वजह है कि वरिष्ठ नागरिक आज हर तरह से स्वयं को असुरक्षित पाते हैं, अपमान झेलते हैं, जो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। बुजुर्गों की समस्याओं के प्रति परिवार, समाज और सरकार की उदासीनता आज के दौर का कड़वा सच है। उम्रदराज लोगों का एक बड़ा प्रतिशत ऐसा है जो स्वयं को समाज से कटा हुआ और मानसिक रूप से दमित महसूस करता है। समाज और सरकार की असंवेदनशीलता बुजुर्गों के लिए बहुत पीड़ादायी है। 2007 में बने कानून मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड डिपेंडेंट्स में सरकार ने यह प्रवाधान किया है कि बूढ़े माता-पिता की देखभाल की जिम्मेदारी उन बच्चों और रिश्तदारों की होगी जो उनकी जायदाद के वारिस होंगें। जबकि आए दिन ऐसी खबरें सुर्खियां बनती हैं, जहां बुजुर्गों से उनकी जमीन जायदाद ले लेने के बावजूद उनके बच्चे और नाते रिश्तेदार उनसे बदसलूकी करते हैं। इतना ही नहीं, पिछले कुछ सालों में उम्रदराज लोगों को मारने-पीटने और घर से निकाल देने के मामले भी तेजी से बढ़े है। आंकड़े बताते है कि भारत ही नहीं, नियंतण्र स्तर पर भी वरिष्ठ नागरिकों की संख्या बढ़ रही है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनियाभर में जिस आयु वर्ग की जनसंख्या सर्वाधिक तेज़ी से बढ़ रही है वह है, 80 या उससे ऊपर का आयुवर्ग। एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक एशिया में रहने वाले हर चार में से एक नागरिक 60 साल का होगा। सामाजिक विघटन के इस दौर में उम्रदराज लोगों को सम्मान और सुरक्षित जीवन जीने का अधिकार मिले, इसके लिए हर स्तर पर प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र ने इस विषय पर कई बार कहा है कि समय के साथ दुनियाभर में बुजुर्गों का अनुपात बढ़ता जायेगा। इसीलिए सरकारों को जीवनयापन, काम और परस्पर देखभाल के संबंध में नए विकल्पों और उपायों पर गौर करना होगा। भारत में भी बुजुर्गों के लिए औपचारिक पेंशन योजनाओं और स्वास्थ्य सेवाओं का योजनागत रूप से विस्तार किया जाना जरूरी है।